दुविधा नदी को भारी है……

दुविधा नदी को भारी है, सागर का पानी खारी है डरती जाती, बहती जाती, क्या करे, बेचारी नारी है बेबस मन की हलचल है, लहर नहीं ये धड़कन है तड़प रही है मिलने को, मिलने में भी तड़पन है मंजिल मेरी सागर है, मन में यह उच्चारी है दुविधा नदी को भारी है……… बंधन तट … Continue reading दुविधा नदी को भारी है……